अनुयायी - हिन्दू, भारतीय, भारतीय
प्रवासी प्रकार - हिन्दू
उद्देश्य -सर्वकामना पूर्ति
नागपंचमी के ही दिन अनेकों गांव व कस्बों में कुश्ती का आयोजन होता है जिसमें आसपास के पहलवान भाग लेते हैं। गाय, बैल आदि पशुओं को इस दिन नदी, तालाब में ले जाकर नहलाया जाता है। इस दिन अष्टनागों की पूजा की जाती है।
शास्त्र विधि विरुद्ध साधना पतन का कारण
पवित्र गीता अध्याय 9 के श्लोक 23, 24 में कहा है कि जो व्यक्ति अन्य देवताओं को पूजते हैं वे भी मेरी (काल जाल में रहने वाली) पूजा ही कर रहे हैं। परंतु उनकी यह पूजा अविधिपूर्वक है(अर्थात् शास्त्रविरूद्ध है भावार्थ है कि अन्य देवताओं को नहीं पूजना चाहिए)। क्योंकि सम्पूर्ण यज्ञों का भोक्ता व स्वामी मैं ही हूँ। वे भक्त मुझे अच्छी तरह नहीं जानते। इसलिए पतन को प्राप्त होते हैं। नरक व चैरासी लाख जूनियों का कष्ट। जैसे गीता अध्याय 3 श्लोक 14-15 में कहा है कि सर्व यज्ञों में प्रतिष्ठित अर्थात् सम्मानित, जिसको यज्ञ समर्पण की जाती है वह परमात्मा (सर्व गतम् ब्रह्म) पूर्ण ब्रह्म है। वही कर्माधार बना कर सर्व प्राणियों को प्रदान करता है। परन्तु पूर्ण सन्त न मिलने तक सर्व यज्ञों का भोग(आनन्द) काल (मन रूप में) ही भोगता है, इसलिए कह रहा है कि मैं सर्व यज्ञों का भोक्ता व स्वामी हूँ।
ये मनुष्य जीवन हमे पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब की भक्ति करने के लिए प्राप्त हुआ है। इस मनुष्य का एक मात्र उदेश्य मोक्ष की प्राप्ति है। सर्व पवित्र ग्रन्थों का सार येही है की एक पूर्ण संत से नाम दीक्षा प्राप्त कर के इस जनम मृत्यु के रोग से मुक्ति पानी चाहिए। पूर्ण संत की यह पहचान है की वो तीन नाम तीन चरण में देता है और उसको ये नाम दान देने की अनुमति होती है।
सतगुरु रामपाल जी महाराज विश्व में एक मात्र संत हैं जो की अपने शिष्यो को सत्नाम दे कर मोक्ष की प्राप्ति करवा सकते हैं।
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