मनुष्य धरती पर अकेला आया , लेकिन अकेले जीवन यापन करना बहुत मुश्किल है।
अकेले मनुष्य किसी की सहायता भी नहीं कर सकता है।
फिर उसके लिए परिवार और समाज की आवश्यकता होती है। फिर इसी तरह परिवार , समाज , गांव , शहर और देश का निर्माण होता है।
प्राचीन काल में जब मनुष्य अकेला था तो स्वयं को जीव जंतुओं से बचाने के लिए उसने झुंडो में रहना प्रारम्भ किया धीरे-धीरे ये झुंड परिवार में बदले और परिवारों ने अपनी आवश्यकतों की पूर्ति के लिए विकास करना शुरू किया तब जाके समाज का निर्माण हुआ।
पुराने समय में संयुक्त परिवार हुआ करते थे और उनमे आदर्शता थी जो एक सभ्य समाज का निर्माण करती थी, परन्तु अब परिस्थिति बिलकुल बदल गयी है अब लोग स्वयं को समाज का हिस्सा तो मानते है।
वर्तमान में मनुष्य का दृष्टिकोड़ समाज को लेकर बदल गया है।
आज के समय में मनुष्य जिस भी क्षेत्र में उन्नति कर रहा है वो समाज की ही तो देन है।
वर्तमान में समाज मनुष्य के जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। समाज मनुष्य के विचारो की अभिव्यक्ति करता है अरे ये समाज ही तो है जो आदिकाल से मनुष्य की सभ्यता एवं संस्कृति का उद्घोषक रहा है।
Both society and humans are two sides of a coin, one body and the other soul, only then it has been said that man is a social animal.
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